Neeraj Chopra Life Story: जब नीरज चोपड़ा को मिली आर्मी की नौकरी, कहा-परिवार में आज तक

Neeraj Chopra Life Story 2024: जब नीरज चोपड़ा को मिली आर्मी की नौकरी, कहा-परिवार ने

Neeraj Chopra की जीवन कहानी संघर्ष, दृढ़ संकल्प, और जीत की एक प्रेरणादायक कहानी है। हरियाणा के एक छोटे से गाँव से निकला यह युवा एथलीट आज भारत का गौरव है, और उसकी कहानी कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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नीरज चोपड़ा के लिए भारतीय सेना में भर्ती होना न केवल एक सम्मान की बात थी, बल्कि इसने उन्हें एक नई पहचान और उद्देश्य भी दिया। सेना में रहते हुए उन्होंने अपनी खेल करियर को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। सेना ने नीरज को खेल की दुनिया में अपनी क्षमता का पूरा प्रदर्शन करने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की

प्रारंभिक जीवन और परिवार की पृष्ठभूमि

Neeraj Chopraका जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गाँव में हुआ था। उनका परिवार एक साधारण किसान परिवार था, जो खेती-बाड़ी से अपना गुजारा करता था। नीरज के पिता सतीश कुमार चोपड़ा एक छोटे किसान थे और उनकी माँ सरोज देवी गृहिणी थीं। नीरज के परिवार में कुल 5 सदस्य थे—उनके माता-पिता, दो बहनें, और नीरज स्वयं। नीरज का बचपन गाँव के वातावरण में बीता, जहाँ सुविधाओं की काफी कमी थी।

गाँव में नीरज का बचपन सामान्य था, लेकिन उनका वजन बहुत ज्यादा था, जिससे वे अक्सर स्कूल और गाँव के बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनते थे। नीरज का वजन कम करने के उद्देश्य से उनके परिवार ने उन्हें खेल की ओर प्रेरित किया। उन्होंने खेल की दुनिया में कदम रखा और खुद को फिट बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया।

खेल की शुरुआत और प्रारंभिक संघर्ष

नीरज ने अपने खेल जीवन की शुरुआत भाला फेंक से की। उनका खेल के प्रति रुझान 11 साल की उम्र में जागा, जब उन्होंने गाँव के पास स्थित स्टेडियम में जाकर भाला फेंक के खेल को पहली बार देखा। उनके चाचा ने उन्हें खेल के प्रति प्रोत्साहित किया और नीरज ने भी इसे एक चुनौती के रूप में लिया। उनके कोच जयवीर सिंह ने नीरज की खेल क्षमता को पहचाना और उन्हें सही मार्गदर्शन दिया।

नीरज ने भाला फेंक में अपने शुरुआती प्रशिक्षण को गंभीरता से लिया और कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी तकनीक को सुधारने के लिए घंटों अभ्यास किया। नीरज का समर्पण और दृढ़ संकल्प उन्हें धीरे-धीरे गाँव के स्तर से राष्ट्रीय स्तर पर लेकर आया। उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर कई छोटे-बड़े टूर्नामेंट जीते और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनानी शुरू की।

पहली बड़ी सफलता और सेना में भर्ती

नीरज की पहली बड़ी सफलता 2016 में आई, जब उन्होंने पोलैंड में आयोजित विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 86.48 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया, जो उस समय का विश्व जूनियर रिकॉर्ड था। इस जीत के बाद नीरज की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी और उन्होंने भारतीय खेल प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना ली।

2016 में ही नीरज को भारतीय सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) के पद पर नियुक्ति मिली। नीरज की सेना में भर्ती उनके और उनके परिवार के लिए एक बड़ा अवसर था। भारतीय सेना में शामिल होने का सपना नीरज के दिल के करीब था, और उन्होंने इसे एक गर्व का विषय माना। उनके अनुसार, “परिवार में आज तक किसी को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली थी, और मुझे यह सम्मान प्राप्त हुआ, यह मेरे लिए गर्व की बात थी।”

सेना के साथ खेल का सफर

नीरज चोपड़ा के लिए भारतीय सेना में भर्ती होना न केवल एक सम्मान की बात थी, बल्कि इसने उन्हें एक नई पहचान और उद्देश्य भी दिया। सेना में रहते हुए उन्होंने अपनी खेल करियर को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। सेना ने नीरज को खेल की दुनिया में अपनी क्षमता का पूरा प्रदर्शन करने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की। नीरज ने सेना में रहते हुए कई महत्वपूर्ण टूर्नामेंट्स में भाग लिया और सफलताएं हासिल कीं।

सेना में शामिल होने के बाद नीरज ने 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी योग्यता को और भी सिद्ध किया। नीरज की इस जीत ने उन्हें भारतीय खेल जगत में एक नई पहचान दिलाई और वह भारत के शीर्ष एथलीटों में शामिल हो गए।

ओलंपिक में सफलता

नीरज चोपड़ा का खेल जीवन तब और भी निखर उठा जब उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। यह जीत न केवल नीरज के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक गर्व का क्षण था। नीरज ने 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया और ओलंपिक खेलों में एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनकी इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें रातोंरात राष्ट्रीय हीरो बना दिया।

ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद नीरज चोपड़ा की लोकप्रियता चरम पर पहुँच गई। उन्हें देश भर से बधाइयाँ मिलीं, और वे हर भारतीय के लिए प्रेरणा बन गए। नीरज की इस सफलता ने उन्हें भारतीय खेल इतिहास में अमर कर दिया और वह आज भी युवा खिलाड़ियों के लिए आदर्श हैं।

नीरज चोपड़ा की खेल के प्रति प्रतिबद्धता

नीरज चोपड़ा का खेल के प्रति समर्पण और अनुशासन हमेशा से ही उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्होंने अपने खेल जीवन में कभी भी समझौता नहीं किया और हमेशा अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से बढ़ते रहे। नीरज का मानना है कि “खेल में सफलता के लिए अनुशासन और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।”

नीरज की खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें एक उत्कृष्ट खिलाड़ी बनाती है। वह नियमित रूप से अपने खेल की तकनीक को सुधारने के लिए घंटों अभ्यास करते हैं और अपने शरीर को फिट रखने के लिए उचित डाइट और व्यायाम का पालन करते हैं। नीरज का मानना है कि “कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है। अगर आप अपने लक्ष्य को पाना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।”

समाज में योगदान और भविष्य की योजनाएँ

नीरज चोपड़ा सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं। उन्होंने अपने गाँव में खेल सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं। नीरज का सपना है कि उनके गाँव से और भी अधिक खिलाड़ी निकलें और देश का नाम रोशन करें। उन्होंने अपने गाँव में बच्चों के लिए खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं और उन्हें खेल की दुनिया में आने के लिए प्रेरित किया है।

नीरज की सफलता के बावजूद, उन्होंने हमेशा अपने परिवार और गाँव को अपने साथ रखा है। वह हमेशा अपने गाँव के विकास के लिए काम करते हैं और उसे बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नीरज का मानना है कि “मेरी सफलता में मेरे परिवार और गाँव का बड़ा योगदान है, और मैं इसे कभी नहीं भूल सकता।”

नीरज चोपड़ा के भविष्य की योजनाएँ भी काफी महत्वाकांक्षी हैं। वह अपने खेल करियर को और ऊँचाइयों पर ले जाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक सफलता हासिल करना चाहते हैं। नीरज का मानना है कि “अभी मेरे खेल जीवन की शुरुआत ही हुई है। मुझे और भी कई ऊँचाइयों पर पहुँचना है और देश के लिए और भी पदक जीतना है।”

खेल की शुरुआत और प्रारंभिक संघर्ष

नीरज ने अपने खेल जीवन की शुरुआत भाला फेंक से की। उनका खेल के प्रति रुझान 11 साल की उम्र में जागा, जब उन्होंने गाँव के पास स्थित स्टेडियम में जाकर भाला फेंक के खेल को पहली बार देखा। उनके चाचा ने उन्हें खेल के प्रति प्रोत्साहित किया और नीरज ने भी इसे एक चुनौती के रूप में लिया। उनके कोच जयवीर सिंह ने नीरज की खेल क्षमता को पहचाना और उन्हें सही मार्गदर्शन दिया।

नीरज ने भाला फेंक में अपने शुरुआती प्रशिक्षण को गंभीरता से लिया और कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी तकनीक को सुधारने के लिए घंटों अभ्यास किया। नीरज का समर्पण और दृढ़ संकल्प उन्हें धीरे-धीरे गाँव के स्तर से राष्ट्रीय स्तर पर लेकर आया। उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर कई छोटे-बड़े टूर्नामेंट जीते और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनानी शुरू की।

पहली बड़ी सफलता और सेना में भर्ती

नीरज की पहली बड़ी सफलता 2016 में आई, जब उन्होंने पोलैंड में आयोजित विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 86.48 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया, जो उस समय का विश्व जूनियर रिकॉर्ड था। इस जीत के बाद नीरज की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी और उन्होंने भारतीय खेल प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना ली।

2016 में ही नीरज को भारतीय सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) के पद पर नियुक्ति मिली। नीरज की सेना में भर्ती उनके और उनके परिवार के लिए एक बड़ा अवसर था। भारतीय सेना में शामिल होने का सपना नीरज के दिल के करीब था, और उन्होंने इसे एक गर्व का विषय माना। उनके अनुसार, “परिवार में आज तक किसी को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली थी, और मुझे यह सम्मान प्राप्त हुआ, यह मेरे लिए गर्व की बात थी।”

सेना के साथ खेल का सफर

नीरज चोपड़ा के लिए भारतीय सेना में भर्ती होना न केवल एक सम्मान की बात थी, बल्कि इसने उन्हें एक नई पहचान और उद्देश्य भी दिया। सेना में रहते हुए उन्होंने अपनी खेल करियर को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। सेना ने नीरज को खेल की दुनिया में अपनी क्षमता का पूरा प्रदर्शन करने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की। नीरज ने सेना में रहते हुए कई महत्वपूर्ण टूर्नामेंट्स में भाग लिया और सफलताएं हासिल कीं।

सेना में शामिल होने के बाद नीरज ने 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी योग्यता को और भी सिद्ध किया। नीरज की इस जीत ने उन्हें भारतीय खेल जगत में एक नई पहचान दिलाई और वह भारत के शीर्ष एथलीटों में शामिल हो गए।

ओलंपिक में सफलता

नीरज चोपड़ा का खेल जीवन तब और भी निखर उठा जब उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। यह जीत न केवल नीरज के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक गर्व का क्षण था। नीरज ने 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर स्वर्ण पदक हासिल किया और ओलंपिक खेलों में एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनकी इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें रातोंरात राष्ट्रीय हीरो बना दिया।

ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद नीरज चोपड़ा की लोकप्रियता चरम पर पहुँच गई। उन्हें देश भर से बधाइयाँ मिलीं, और वे हर भारतीय के लिए प्रेरणा बन गए। नीरज की इस सफलता ने उन्हें भारतीय खेल इतिहास में अमर कर दिया और वह आज भी युवा खिलाड़ियों के लिए आदर्श हैं।

नीरज चोपड़ा की खेल के प्रति प्रतिबद्धता

नीरज चोपड़ा का खेल के प्रति समर्पण और अनुशासन हमेशा से ही उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्होंने अपने खेल जीवन में कभी भी समझौता नहीं किया और हमेशा अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से बढ़ते रहे। नीरज का मानना है कि “खेल में सफलता के लिए अनुशासन और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।”

नीरज की खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें एक उत्कृष्ट खिलाड़ी बनाती है। वह नियमित रूप से अपने खेल की तकनीक को सुधारने के लिए घंटों अभ्यास करते हैं और अपने शरीर को फिट रखने के लिए उचित डाइट और व्यायाम का पालन करते हैं। नीरज का मानना है कि “कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है। अगर आप अपने लक्ष्य को पाना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।”

समाज में योगदान और भविष्य की योजनाएँ

नीरज चोपड़ा सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं। उन्होंने अपने गाँव में खेल सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं। नीरज का सपना है कि उनके गाँव से और भी अधिक खिलाड़ी निकलें और देश का नाम रोशन करें। उन्होंने अपने गाँव में बच्चों के लिए खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं और उन्हें खेल की दुनिया में आने के लिए प्रेरित किया है।

नीरज की सफलता के बावजूद, उन्होंने हमेशा अपने परिवार और गाँव को अपने साथ रखा है। वह हमेशा अपने गाँव के विकास के लिए काम करते हैं और उसे बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नीरज का मानना है कि “मेरी सफलता में मेरे परिवार और गाँव का बड़ा योगदान है, और मैं इसे कभी नहीं भूल सकता।”

नीरज चोपड़ा के भविष्य की योजनाएँ भी काफी महत्वाकांक्षी हैं। वह अपने खेल करियर को और ऊँचाइयों पर ले जाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक सफलता हासिल करना चाहते हैं। नीरज का मानना है कि “अभी मेरे खेल जीवन की शुरुआत ही हुई है। मुझे और भी कई ऊँचाइयों पर पहुँचना है और देश के लिए और भी पदक जीतना है।”

नीरज चोपड़ा, भारतीय भाला फेंक एथलीट, का जीवन संघर्ष और सफलता की अद्भुत कहानी है। उन्होंने न केवल खेल में भारत का नाम रोशन किया, बल्कि अपने परिवार के लिए भी गर्व का विषय बने। उनके जीवन की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों का पीछा करता है।

खेल के प्रति रुचि और शुरुआत

नीरज चोपड़ा की खेल के प्रति रुचि उनके चाचा के माध्यम से जागी, जिन्होंने उन्हें गांव के पास स्थित स्टेडियम में ले जाकर भाला फेंकने की सलाह दी। नीरज ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और अपने कोच जयवीर सिंह से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। उनके कोच ने नीरज की क्षमता को पहचाना और उन्हें खेल की सही तकनीक सिखाई।

नीरज ने 11 साल की उम्र में ही भाला फेंक की शुरुआत की थी। उन्होंने मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ इस खेल में महारत हासिल की। नीरज ने अपनी शुरुआत छोटे स्तर के टूर्नामेंट्स से की और धीरे-धीरे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।

आर्मी में भर्ती और खेल के प्रति समर्पण

नीरज चोपड़ा का जीवन तब बदल गया जब उन्हें भारतीय आर्मी में शामिल होने का मौका मिला। 2016 में, नीरज को भारतीय सेना के राजपुताना राइफल्स में जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) के पद पर नियुक्त किया गया। इस नियुक्ति ने नीरज के जीवन को एक नई दिशा दी। उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में लिया और अपने खेल के प्रति समर्पण को और भी बढ़ा दिया। आर्मी की नौकरी के साथ ही नीरज ने अपने खेल को नए ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उन्होंने आर्मी में रहते हुए कई महत्वपूर्ण टूर्नामेंट्स में हिस्सा लिया और जीत दर्ज की।

नीरज के अनुसार, “परिवार में आज तक किसी को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली थी, और मुझे यह सम्मान प्राप्त हुआ, यह मेरे लिए गर्व की बात थी।”

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां

नीरज चोपड़ा ने 2016 में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद, उन्होंने 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक हासिल किया। नीरज की यह जीत भारतीय खेल इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि तब आई जब उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। नीरज चोपड़ा ओलंपिक खेलों में एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनकी इस जीत ने उन्हें रातोंरात देश का हीरो बना दिया।

खेल के प्रति दृष्टिकोण और अनुशासन

नीरज चोपड़ा का खेल के प्रति दृष्टिकोण बेहद अनुशासन और समर्पण से भरा हुआ है। उन्होंने अपने खेल के प्रति कभी भी समझौता नहीं किया। नीरज नियमित रूप से कड़ी मेहनत करते हैं और अपने शरीर को फिट रखने के लिए उचित डाइट और व्यायाम करते हैं। उनका कहना है कि “खेल में सफलता के लिए अनुशासन और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।”

नीरज का मानना है कि “कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है। अगर आप अपने लक्ष्य को पाना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।”

समाज में योगदान और भविष्य की योजनाएं

नीरज चोपड़ा एक खिलाड़ी होने के साथ-साथ समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं। उन्होंने अपने गाँव में खेल सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं। नीरज का सपना है कि उनके गाँव से भी और अधिक खिलाड़ी निकले और देश का नाम रोशन करें।

नीरज ने अपनी सफलता के बावजूद जमीन से जुड़े रहना नहीं छोड़ा। वह हमेशा अपने परिवार और गाँव को अपने साथ रखते हैं और उनके विकास के लिए काम करते हैं। नीरज का मानना है कि “मेरी सफलता में मेरे परिवार और गाँव का बड़ा योगदान है, और मैं इसे कभी नहीं भूल सकता।”

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