Tulsidas Jayanti 2024:जयंती कब है
तिथि: तुलसीदास जयंती, महान संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास की जयंती, 2024 में 23 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन को हिंदू कैलेंडर के श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के अनुसार मनाया जाता है।
महत्व: तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ की रचना की, जो भगवान श्रीराम की महिमा और उनके जीवन पर आधारित एक महाकाव्य है। इसे हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। तुलसीदास जयंती को संत तुलसीदास की याद में और उनके योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।
जीवनी:
प्रारंभिक जीवन
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1532 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास के जन्म के समय, उन्हें कोई रोना नहीं आया और उनके मुँह में सभी 32 दांत मौजूद थे। इस असामान्य घटना के कारण उन्हें जन्म के बाद उनके माता-पिता द्वारा त्याग दिया गया।
तुलसीदास जी को उनके गुरु नरहरिदास ने गोद लिया और उनका पालन-पोषण किया। गुरुजी ने ही उन्हें राम कथा सुनाई और भगवान राम के प्रति भक्ति का भाव जगाया।
शिक्षा और विवाह
तुलसीदास जी का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन वे कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा प्राप्त करने में सफल रहे। उन्होंने संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन किया। तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली से हुआ, जो एक साधारण ब्राह्मण कन्या थीं। रत्नावली के साथ उनका एक पुत्र हुआ, परंतु वह जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त हो गया।
भक्ति की ओर रुझान
रत्नावली के शब्दों ने तुलसीदास के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन ला दिया। एक दिन जब तुलसीदास अपनी पत्नी से मिलने गए, तो रत्नावली ने उनसे कहा कि यदि वे भगवान राम के प्रति इतना प्रेम दिखाते जितना उन्होंने अपनी पत्नी के प्रति दिखाया, तो वे बहुत बड़ा योगी बन सकते थे। इस घटना के बाद, तुलसीदास जी ने गृहस्थ जीवन को त्याग दिया और भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।
रामचरितमानस की रचना
तुलसीदास जी ने काशी में रहकर ‘रामचरितमानस’ की रचना की। उन्होंने इस महाकाव्य को अवधी भाषा में लिखा, ताकि इसे आम जनमानस भी समझ सके। रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया है, जिसमें उनका जन्म, बाल्यावस्था, वनवास, सीता हरण, रावण वध आदि शामिल हैं। रामचरितमानस को हिंदी साहित्य के सबसे महान ग्रंथों में से एक माना जाता है और इसे रामायण का ही एक रूप कहा जाता है।
अन्य रचनाएँ
रामचरितमानस के अलावा, तुलसीदास जी ने कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जैसे कि ‘विनय पत्रिका’, ‘हनुमान चालीसा’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’ आदि। उनकी रचनाएँ भक्ति, नैतिकता, और धर्म के महत्वपूर्ण संदेशों को प्रकट करती हैं। विशेष रूप से हनुमान चालीसा, जो भगवान हनुमान की स्तुति में लिखी गई है, आज भी व्यापक रूप से गाई जाती है।
समर्पण और समाज सुधार
तुलसीदास जी ने अपने जीवन को भगवान राम की सेवा और भक्ति में समर्पित कर दिया। उनके विचारों ने समाज को एक नई दिशा दी और लोगों को भक्ति मार्ग की ओर प्रेरित किया। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई।
निधन
तुलसीदास जी ने काशी में ही अपने जीवन के अंतिम समय को बिताया और 1623 ईस्वी में उनका निधन हो गया। उनकी समाधि काशी में स्थित अस्सी घाट के पास है, जहाँ आज भी उनके अनुयायी और भक्त श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
तुलसीदास जयंती का महत्त्व
तुलसीदास जयंती का पर्व महान संत तुलसीदास जी के जीवन और उनके कार्यों का स्मरण करने का एक अवसर है। इस दिन को उनके अनुयायी भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। यह पर्व हमें उनके महान विचारों और शिक्षाओं को याद दिलाता है और हमें भगवान राम के प्रति भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
तुलसीदास जी की शिक्षा और साहित्यिक योगदान
तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अपने जीवन और लेखन में रामभक्ति को प्रमुख स्थान दिया और समाज को रामराज्य की परिकल्पना के माध्यम से आदर्श समाज की दिशा दिखाई। उनकी रचनाओं में धर्म, नैतिकता, और समाज सुधार के महत्वपूर्ण संदेश निहित हैं।
‘रामचरितमानस’ की विशेषताएँ
‘रामचरितमानस’ तुलसीदास जी की प्रमुख रचना है, जिसे उन्होंने अवधी भाषा में लिखा। इसे भारतीय साहित्य का एक महान ग्रंथ माना जाता है। ‘रामचरितमानस’ में सात कांड हैं: बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड, और उत्तरकांड। इन कांडों में भगवान राम के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ में उन्होंने भगवान राम को एक आदर्श पुरुष, राजा, पुत्र, भाई, और पति के रूप में प्रस्तुत किया है।
तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ में समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने भगवान राम को सभी जातियों और वर्गों के लिए एक आदर्श और परम शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। इस ग्रंथ में नैतिकता, आदर्श, और भक्ति का संचार होता है, जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।
‘हनुमान चालीसा’ और अन्य रचनाएँ
‘हनुमान चालीसा’ तुलसीदास जी की एक और प्रमुख रचना है, जो भगवान हनुमान की स्तुति में लिखी गई है। यह रचना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके माध्यम से उन्होंने साहस, शक्ति, और भक्तिभाव का संदेश दिया है। हनुमान चालीसा आज भी व्यापक रूप से गाई जाती है और इसका पाठ करने वाले लोगों को साहस और विश्वास मिलता है।
तुलसीदास जी की अन्य प्रमुख रचनाएँ ‘विनय पत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, आदि हैं। इन सभी रचनाओं में उन्होंने भक्तिभाव, धर्म, और समाज सुधार के महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं।
तुलसीदास जी की भक्ति और रामभक्ति की परंपरा
तुलसीदास जी की भक्ति परंपरा रामभक्ति पर आधारित है। उन्होंने अपने जीवन में भगवान राम को सर्वस्व माना और उन्हें ही अपना आराध्य देव माना। उनके लिए राम केवल एक भगवान ही नहीं, बल्कि उनके जीवन के आदर्श और मार्गदर्शक थे। उन्होंने रामभक्ति को अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाया और समाज को भी रामभक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
रामभक्ति की इस परंपरा ने समाज में एक नई ऊर्जा और दिशा का संचार किया। तुलसीदास जी के समय में समाज में अनेक समस्याएँ थीं, जैसे जातिवाद, अंधविश्वास, और धर्म की गलत व्याख्या। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त इन बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और लोगों को सच्चे धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
तुलसीदास जयंती का उत्सव
तुलसीदास जयंती का पर्व संत तुलसीदास जी के जीवन और उनके कार्यों का स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन, उनके अनुयायी और भक्तजन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें ‘रामचरितमानस’ का पाठ, भजन-कीर्तन, और प्रवचन शामिल होते हैं।
इस दिन को तुलसीदास जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं का स्मरण करने और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा के रूप में मनाया जाता है। उनके अनुयायी इस दिन का उपयोग उनके महान कार्यों की प्रशंसा करने और उनके आदर्शों को अपनाने के लिए करते हैं